अब न अजुध्या मन में बसती
अब न बगाइच वाला वह मन
कंकरीट के मकड़जाल ने
फाँस लिया है सादा जीवन
कभी पकड़ना अपनी छाया
कभी छाँह से डर कर रहना
कभी चाँद-तारों को चाहें
कभी धूप के मोती चुनना
रस था आमों के झगड़ों में
कुट्टी में भी था अपनापन
छोटेपन के बाल-इशारे
माँ समझे या समझे बापू
जिनकी ओली ही लगती थी
सबसे ऊँचा सुन्दर टापू
गाँव किनारे जखई बाबा-
का वह चैपड़ था सिहांसन
धुक-धुक, धुक-धुक जी करता है
कितने फंदे, कितने धंधे
चढ़ी जवानी देखे सपना
बोझिल झुके हुए हैं कंधे
मन ही मन यह चाहूँ मुझमें
लौटे फिर से मेरा बचपन
अब न बगाइच वाला वह मन
कंकरीट के मकड़जाल ने
फाँस लिया है सादा जीवन
कभी पकड़ना अपनी छाया
कभी छाँह से डर कर रहना
कभी चाँद-तारों को चाहें
कभी धूप के मोती चुनना
रस था आमों के झगड़ों में
कुट्टी में भी था अपनापन
छोटेपन के बाल-इशारे
माँ समझे या समझे बापू
जिनकी ओली ही लगती थी
सबसे ऊँचा सुन्दर टापू
गाँव किनारे जखई बाबा-
का वह चैपड़ था सिहांसन
धुक-धुक, धुक-धुक जी करता है
कितने फंदे, कितने धंधे
चढ़ी जवानी देखे सपना
बोझिल झुके हुए हैं कंधे
मन ही मन यह चाहूँ मुझमें
लौटे फिर से मेरा बचपन
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