Tuesday 15 October 2013

पंच गाँव का - अवनीश सिंह चौहान

आँख लाल है
झूम-चाल है
लगते कुछ बेढंगे
इज्ज़त इनसे दूर कि इनकी
जेबों में हैं दंगे

दबंगई की दाढ़ लगी है
कैसी आदमखोरी
सूँघ रहे गश्ती में कुत्ते
लागर की कमजोरी

इनकी चालों में फँस जाते
अच्छे-अच्छे चंगे

गिरवी पर, गोबर्धन का श्रम
है दरियादिल मुखिया
पत्थर-सी रोटी के नीचे
दबी हुई है बिछिया

न्याय स्वयं बिकने आता है
बेदम-से हैं पंगे

पंच गाँव का खुश है लेकिन
हाथ तराजू डोले
लगता जैसे एक अनिर्णय-
की भाषा में बोले

उतर चुका दर्पण का पारा
सम्मुख दिखते नंगे



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