चेहरे पढ़ो
कि सबके सब हैं
अविश्वास के अक्षर
थर्मामीटर तोड़ रहा है
उबल-उबल कर पारा
लेबल मीठे जल का
लेकिन
पानी लगता खारा
समय उस्तरा है जिसको
अब चला रहे हैं बन्दर
चीलगाह जैसा है मंजर
लगती भीड़ मवेशी
किसकी कब
थम जाएँ साँसें
कब पड़ जाए पेशी
कितने ही घर डूब गए हैं
यह बाज़ार समन्दर
त्यागी है हंसों ने कंठी
बगुलों ने है पहनी
बागवान की
नज़रों से है
डरी-डरी-सी टहनी
दिखे छुरी को सेंदुर-जैसा
सूरज एक चुकंदर
कि सबके सब हैं
अविश्वास के अक्षर
थर्मामीटर तोड़ रहा है
उबल-उबल कर पारा
लेबल मीठे जल का
लेकिन
पानी लगता खारा
समय उस्तरा है जिसको
अब चला रहे हैं बन्दर
चीलगाह जैसा है मंजर
लगती भीड़ मवेशी
किसकी कब
थम जाएँ साँसें
कब पड़ जाए पेशी
कितने ही घर डूब गए हैं
यह बाज़ार समन्दर
त्यागी है हंसों ने कंठी
बगुलों ने है पहनी
बागवान की
नज़रों से है
डरी-डरी-सी टहनी
दिखे छुरी को सेंदुर-जैसा
सूरज एक चुकंदर
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